सत्यजीत रे का जीवन परिचय

Juhi
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सत्यजीत रे का जीवन परिचय

जन्म एवं माता-पिता

बंगला व हिन्दी फिल्मों के लब्धप्रतिष्ठ निर्माता, निर्देशक, प्रसिद्ध कहानीकार, संवाद लेखक, फोटोग्राफार, विश्वविख्यात आस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय फिल्मकार सत्यजीत रे 'माणिकदा' का जन्म कलकत्ता की झारपार रोड स्थित सुकुमार रे के घर 2 मई 1921 को हुआ था। आपके पिता सुकुमार रे एक विद्वान अध्यापक, प्रसिद्ध लेखक, संगीत प्रेमी, व्यंग्यकार तथा चित्रकार थे। सुकुमार रे ने 1911 में इंग्लैण्ड से मुद्रण तकनीक की शिक्षा प्राप्त की थी। माता सुपर्णा रे बंगला की विख्यात गायिका थीं। माता; धैर्य, साहस, लगन, सच्चाई, कर्मठता और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थीं। इस प्रकार सत्यजीत रे को संगीत और कला का माहौल बचपन से ही प्राप्त हुआ था। कला से आपको बचपन से ही लगाव था।


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सत्यजीत रे का जीवन परिचय

शिक्षा-दीक्षा

सत्यजीत रे के जन्म के कुछ समय बाद ही सुकुमार रे की तबीयत खराब रहने लगी। बीमारी इतनी बढ़ गयी कि ठीक ही नहीं हुई और मात्र 36 वर्ष की अल्पायु में ही पिता सुकुमार रे का असामयिक निधन हो गया । उस समय सत्यजीत रे की उम्र मात्र ढाई वर्ष की थी। यह घटना सन् 1924 की है। पिता का साया अबोध बालक सत्यजीत के सिर से उठ गया। बालक अनाथ हो गया। ऐसे में माता सुपर्णा रे ने धैर्य का परिचय देते हुए अपने परिवार को संभाला। माता सुपर्णा झारपार रोड स्थित अपना प्रिंटिग व्यवसाय समेटकर अपने भाई के घर भवानीपुर आ गयीं। सत्यजीत रे की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही अपने मामा और माता की देख रेख में शुरू हुई। माता सुपर्णा रे सत्यजीत को स्वयं बड़े परिश्रम और लगन से पढ़ाती थीं। नौ वर्ष की अवस्था में माता सुपर्णा रे ने अपने पुत्र का दाखिला कलकत्ता के बालीगंज स्थित राजकीय हाई स्कूल में करा दिया। यह सरकारी विद्यालय था। सत्यजीत रे ने इसी विद्यालय से हाई स्कूल तक की शिक्षा पूरी की। तत्पश्चात 1940 में आपने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कालेज से अर्थशास्त्र आनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की।


माँ सुपर्णा रे रवीन्द्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थीं। वह चाहती थीं कि सत्यत्रित के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें रवीन्द्र के सानिध्य में भेजा जाए। अतः आपने अपने बेटे को रवीन्द्र नाथ ठाकुर की "आशीष छाया' के कलाकेन्द्र में विद्याध्ययन करने हेतु दाखिल करा दिया। सत्यजीत ने शान्तिनिकेतन के शान्त एवं घर जैसे वातावरण में तीन वर्ष तक अध्ययन किया।


प्रथम व्यवसाय

शांतिनिकेतन में शिक्षा पूरी करने के उपरान्त सत्यजीत रे ने ब्रिटेन मूल की एक विज्ञापन एजेंसी के कलकत्ता स्थित कार्यालय में विजुअलाइजर के रूप में कार्य करना शुरू किया। इस समय आपकी रूचि सिनेमा की ओर बलवती होने लगी। आपको सिने साहित्य पढ़ने तथा शौकिया तौर पर पटकथा लिखने में रूचि होने लगी थी। आपने 1947 में कलकत्ता फिल्म सोसाइटी की स्थापना की। साथ ही 1948 में 'घरे बाहिरे' की पटकथा भी लिख डाली। इन्हीं दिनों 1949 में आपकी भेंट अमेरिकी फिल्मों के विख्यात निर्देशक ज्याँ रेनुवा से हुई। ज्याँ रेनुवा अपनी निर्माणाधीन फिल्म "रिवर' की शूटिंग करने कलकत्ता आए थे। ज्याँ रेनुवा ने आपको फिल्म निर्माण के लिए प्रेरित किया। इसी बीच सत्यजीत को 1950 में अपनी कम्पनी के कार्य से कम्पनी के मुख्यालय लन्दन भेजा गया। लंदन में सत्यजीत लगभग साढ़े चार महीने तक रहे। लन्दन में आपको फिल्में देखने का खूब अवसर प्राप्त हुआ। लन्दन में आपने 'बाईसकिल थीब्ज' नामक पहली फिल्म देखी थी। फिर तो फिल्में देखने का सिलसिला चल पड़ा। आपने अपने लन्दन प्रवास के दौरान 50 से अधिक फिल्में देखीं। बस, फिर क्या था? लन्दन में ही सत्यजीत रे ने फिल्म निर्माण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। लन्दन से वापस आते समय समुद्री यात्रा के दौरान ही आपने एक पटकथा लिख डाली।


प्रथम बंगला फिल्म 'पाथेर पंचाली'

आपने अपनी पहली फिल्म 'पाथेर पंचाली' का निर्माण 1955 में किया था। इस फिल्म की पटकथा सत्यजीत रे ने स्वयं लिखी थी। इसका शीर्षक 'विभूतिभूषण वंद्योपाध्याय' के उपन्यास से लिया गया है। सत्यजीत रे को यह फिल्म पूरा करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आपके पास फिल्म निर्माण के समय धन की इतनी कमी हो गयी कि आपको अपनी पत्नी के गहने तक बेचनें पड़े। फिर भी फिल्म पूरी नहीं हुई तो आपने सरकार से ऋण लिया। परन्तु कृत संकल्प और दृढ़ निश्चय, लगन और ईश्वर आस्था से आपकी फिल्म पूर्ण हुई। दर्शकों ने इस फिल्म को अत्यधिक सराहा । इस फिल्म ने सत्यजीत को प्रसिद्धि के चरम शिखर पर पहुंचा दिया। जापान की प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक श्रीमती कावाकिता ने 'पाथेर पंचाली' को विश्व सनेमा की सबसे महान फिल्म बताया। इस फिल्म की विश्व सिनेमा में भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी। इस फिल्म को केन्स फिल्म समारोह में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया तथा इसे मानवीय दस्तावेज बताया गया। इस फिल्म को सेनफ्रांसिस्को फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार मिला। पाथेर पंचाली को 12 अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। फिल्म जगत में यह फिल्म 'मील का पत्थर' साबित हुई।


अपराजिता

बांग्ला भाषा में आपकी द्वितीय फिल्म 'अपराजिता'1956 में प्रदर्शित हुई । इस फिल्म को वेनिस फिल्म फेस्टिवल 1957 में 'गोल्डन लायन आफ सेंट मार्क' पारितोषिक प्रदान किया गया। प्रथम हिन्दी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी'-माणिकदा की प्रथम हिन्दी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' सन 1977 में प्रदर्शित हुई थी। यह फिल्म मुंशी प्रेम चन्द की कहानी 'शतरंज के खिलाड़ी' पर आधारित थी। इस फिल्म को भी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था।


माणिकदा की श्रेष्ठ फिल्में

इन तीन फिल्मों के अतिरिक्त माणिकदा की अन्य श्रेष्ठ फिल्में हैं 'पारस पाथर' (1957) जल सागर (1958) आपुर संसार ( 1959 ) देवी (1960) रवीन्द्रनाथ टैगोर वृत्त फिल्म (1961) तिन कन्या (1961) कांचन जंगा ( 1962) अभिज्ञान (1962) महानगर (1963) चारुलता (1964) का पुरूष ओ महापुरूष (1965 ) नायक ( 1966 ) चिड़िया खाना ( 1969 ) सोनार केल्ला ( 1973) शतंरज के खिलाड़ी ( 1977 ) जय बाबा फेलूनाथ ( 1978 ) हीरक राजार देशे (1980) आगन्तुक (1991) इसके अलावा घरे बाहिरे, अशनि संकेत, गुंपी गायन, प्रतिद्वंदी, जन आरण्य तथा सद्गति फिल्में काफी सराही गयीं।


आप बाल साहित्य लेखक के रूप में भी विख्यात हैं। आपकी 'बक्सा रहस्य' 'प्रोफेसर शोंकू' 'विषय चलचित्र' 'जब मैं छोटा था' 'एकेई बोले शूटिंग' आदि रचनाएं बाल साहित्य की अप्रतिम धरोहर हैं।


मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता

माणिकदा की हर फिल्म में मानवीय मूल्यों को दर्शाया गया है, जिन्दगी की नई व्याख्या की गयी है। आपने सदा अन्याय, शोषण, पाखण्ड, तानाशाही, एकाधिकार तंत्र तथा दलितों के शोषण का विरोध किया है। 'प्रतिद्वंदी' तथा 'जन आरण्य' फिल्मों में आपने नागरीय जीवन की विडम्बनाओं का सजीव चित्रण किया है वहीं 'सद्गति' तथा 'शतरंज के खिलाड़ी' में ग्रामीण जीवन को दर्शाया है। माणिकदा का यथार्थ मानवतावादी तथा प्रगतिवादी है। आपकी सभी फिल्मों में कोई न कोई उद्देश्य रहता है।


सम्मान एवं पुरस्कार

फिल्म जगत के प्रति माणिकदा के सराहनीय एवं उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने माणिकदा को 1958 में 'पद्म श्री', 1965 में पद्म भूषण' तथा 1976 में 'पदम् विभूषण' सम्मानों से सम्मानित किया। 5 जुलाई 1974 ई० को सत्यजीत रे को 'रेल कालेज आफ आर्ट्स' ने डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। 1978 में आसफोर्ड विश्वविद्यालय ने भी आपको डाक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ मितेरा ने माणिकदा को 1989 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'लीजन डी आनर' स्वयं कलकत्ता आकर प्रदान किया था। 1991 में सत्यजीत रे को फिल्म जगत के सर्वोच्च पुरस्कार 'आस्कर अवार्ड' से विभूषित किया गया। अमेरिका की 'आर्ट्स आफ मोशन पिक्चर्स' के दो अमरीकी।प्रतिनिधि माणिकदा को आस्कर आवार्ड देने कलकत्ता आए तथा उन्होंने अस्पताल में भर्ती मणिकदा को यह सम्मान स्वयं अपने हाथों से प्रदान किया। माणिकदा आस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय थे। 20 मार्च 1992 को भारत सरकार ने आपको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी0 वी0 नरसिंहराव ने यह अलंकरण माणिकदा को कलकत्ता जाकर स्वयं प्रदान

किया था तथा अस्वस्थ माणिकदा के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की थी। माणिकदा की फिल्म 'आगन्तुक' के लिए 39वें राष्ट्रीय फिल्म समारोह में ‘स्वर्णकमल' पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह पुरस्कार तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री गिरिजा व्यास ने कलकत्ता जाकर माणिकदा की पत्नी विजया रे को दिया था।


यहीं नहीं आप भारतीय फिल्म फेस्टिवल की ज्यूरी के तीन बार सदस्य रहे । इसके अतिरिक्त मास्को बर्लिन तथा केन्स में हुए अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सत्यजीत रे को ज्यूरी का सदस्य बनाया गया था।


निधन

फिल्म जगत का यह देवीप्यमान नक्षत्र लम्बी बीमारी के बाद 23 अप्रैल 1992 को सायं पांच बजकर 35 मिनट पर अस्त हो गया। विश्व के फिल्म जगत को अपूरणीय क्षति हुई। देश माणिकदा की सेवाओं के लिए उनका ऋणी रहेगा।


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