सितार वादक पण्डित रविशंकर का जीवन परिचय
जन्म
भारतीय संगीत विधा को विदेशों में लोकप्रिय बनाने वाले, उस्ताद अली अकबर खाँ के बहनोई, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के नृत्याचार्य पंडित उदय शंकर के कनिष्ठ भ्राता, विख्यात सितार वादक पण्डित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को बनारस के विद्वान घराने में हुआ था। आपका परिवार मूलतः बंगाली था। परन्तु आपके पूर्वज कुछ समयोपरान्त बनारस में आकर रहने लगे थे।
सितार वादक पण्डित रविशंकर का जीवन परिचय |
सितार वादन में दीक्षा
पण्डित रविशंकर के अग्रज पं. उदय शंकर विश्व प्रसिद्ध नृत्याचार्य थे। प्रारम्भ में पण्डित रवि शंकर नृत्य सीखने के लिए अपने भाई की नर्तकमण्डली के साथ विश्व भ्रमण किया करते थे। एक बार उदय शंकर के आग्रह पर भारत के सबसे महान संगीतज्ञ प्रसिद्ध सरोदनवाज मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खाँ उनकी नर्तक टोली के साथ यूरोप गए। यूरोप में समय मिलने पर पण्डित रवि शंकर ने उस्ताद से सितार वादन सिखाने का आग्रह किया। पण्डित रवि शंकर उस्ताद की उस्तादी से इतने प्रभावित हुए कि आपने नृत्य की शिक्षा छोड़ सितार वादन सीखने का दृढ़ निश्चय कर लिया। अब आप उस्ताद अलाउद्दीन खाँ के चरणों में बैठकर सितार वादन सीखने लगे । पण्डित जी ने लिखा है, "कई अवसरों पर गुरू के चरणों में मैं, अली अकबर खां व अन्नपूर्णा (उस्ताद अलाउद्दीन खाँ की पुत्री जिसकी शादी बाद में रवि शंकर से हुई) जब सीखने बैठते तो समय थम जाता । हम घण्टों बाबा द्वारा निर्मित इन्द्रधनुषी रंगों के संसार में खो जाते।"
उस्ताद अलाउदीन की शिक्षा के प्रभाव से पण्डित रविशंकर ने सितारवादन में नूतन प्रयोग भी किए। पण्डित जी के वादन में बीन अंग झलकता है । आप मीड़, जमजमा, कृन्तन आदि बड़ी सफाई से बजाते हैं। लयकारी में लड़गुंथाव में आप माहिर हैं। आप आलापजोड़, मसीतखानी-रजाखानी, गत व झाला अत्यन्त कुशलता से बजाते हैं। कभी-कभी आप ठुमरी राग भी बजाते हैं।
शिक्षा उपरान्त सेवा
उस्ताद अलाउद्दीन से सितार वादन में दीक्षित होने के उपरान्त पण्डित रविशंकर ने सन् 1949 में आकाशवाणी दिल्ली में संगीत निर्देशक का कार्यभार संभाला। पण्डित जी सात वर्ष तक आकाशवाणी में रहे । यहाँ रहकर आपने नेशनल आक्रस्ट्रा का निर्माण किया। आपने 'डिस्कवरी आफ इण्डिया' तथा 'सामान्य क्षति' नृत्य नाटिकाओं का संगीत तैयार किया है । पण्डित जी ने 'काबुलीवाला' तथा 'अनुराधा' जैसी फिल्मों में संगीत दिया है। आपकी संगीत
स्वर-लिपियों ने सत्यजीत राय के 'आपु' फिल्म त्रिनाटक 'पाथेर पांचाली', 'अपराजिता', तथा 'वर्ल्ड आफ आपु' के लिए मर्मस्पर्शी, प्रभावोत्पादक संगीत सृजन किया है।
संगीत सफर
आपने देश के विभिन्न नगरों में अपना संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करके स्रोताओं को अपने सितारवादन से मंत्रमुग्ध किया है। इतना ही नहीं पण्डित जी ने इंग्लैण्ड, कनाडा और हालीवुड में भी फिल्म निर्माण के वास्ते भी संगीत दिया है। आपने भारत के अलावा विश्व के लगभग अधिकांश देशों में अपना संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। सर्व प्रथम आपने 1958 में पेरिस में आयोजित यूनेस्को संगीत समारोह में भाग लिया। इसके अलावा पण्डित रवि शंकर ने भारतीय सांस्कृतिक दल के नेता के रूप में जापान, आष्ट्रेलिया, व न्यूजीलैण्ड की यात्रा की है। भारतीय संस्कृति के राजदूत के रूप में भारत आपका शुक्रगुजार है।
आपको 1967 में यूनाइटेड नेशन्स ह्यूवन राइट्स डे' पर कार्यक्रम देने का गौरव प्राप्त हुआ है। यहाँ आपने अपनी सितारवादन कला का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त बायलिन वादक यहूदी मेनुहिन के साथ मिलकर अपनी एक रचना भी प्रस्तुत की। यहूदी मेनुहिन आपके घोर प्रशंसक व सहयोगी हैं । इसके अलावा बीटल जार्ज, हैरिसन आपके विदेशी शिष्य हैं। आपकी भारतीय शिष्य परम्परा में पण्डित उमाशंकर मिश्र, राजस्थान के शशि मोहन भट्ट, व ग्रेमी अवार्ड विजेता विश्वमोहन भट्ट शामिल हैं।
पण्डित रविशंकर जी ने उत्तर और दक्षिण के संगीत को निकट लाने का साहसिक एवं स्तुत्य कार्य किया है । आपने विभिन्न मंचों पर चारूकेशी कीरवाणी एवं जनसम्मोहिनी जैसे दक्षिणात्य रागों को मंच पर प्रस्तुत करने के साथ-साथ उत्तर भारत में प्रचलित रसिया, तिलक श्याम, नटभैरव व मोहनकोस जैसे नए रागों की निर्मिति भी की है। आपने बम्बई में 'किन्नर विद्यालय' नामक एक विद्यालय की स्थापना की। इस विद्यालय की एक शाखा लास एंजल्स में भी खोली गयी। 1977 में पं. रविशंकर ने कलकत्ता में शंकर फाउडेशन की स्थापना की। आपने संगीत तथा निष्पादन कलाओं के लिए बनारस में एक अनुसंधान संस्थान की भी स्थापना की थी।
लेखक रविशंकर
पण्डित रविशंकर एक महान सितारवादक होने के साथ-साथ एक प्रतिभासम्पन्न लेखक भी हैं । आपने अंग्रेजी में 'माई म्यूजिक माई लाइफ' तथा बंगाली में 'राग अनुराग' नामक पुस्तकों की रचना की है।
उपाधियाँ एवं सम्मान
सितारवादन में उत्कृष्टता हासिल करने तथा संगीत के क्षेत्र में पं. रविशंकर के योगदान को देखते हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने 1 मार्च 1980 को आपको डी. लिट. की मानद उपाधि प्रदान की भारत सरकार ने आपको 1967 में पद्म भूषण तथा 1981 में पद्म विभूषण के नागरिक सम्मान देकर सामानित किया है। पं. रविशंकर 'अमरीकन अकादमी आफ आर्ट्स एण्ड लैटर्स' के अवैतनिक सदस्य तथा संयुक्त राष्ट्र के 'रोस्ट्रम आफ कम्पोजर्स आफ यूनेस्कोग इन्टरनेशनल म्यूजिक काउन्सिल के सदस्य हैं।
भारत रत्न
संगीत के श्रेत्र में पण्डित रविशंकर के उल्लेखनीय एवं अप्रतिम योगदान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए भारत सरकार ने आपको वर्ष 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण 'भारत रत्न' से अलंकृत किया। वास्तव में पं. रविशंकर रत्नप्रभा भारत माँ की गोदी के अनुपम रत्न हैं।
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