गुलजारी लाल नन्दा का जीवन परिचय
आधुनिक युग के गाँधी, राजनीतिक ऋषि, जनसेवक, समाज सुधारक, गरीबों के हिमायती, योजना आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष, स्वतंत्र भारत के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नन्दा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को अपने नाना दीवान देवी दयालपुरी के घर घड़ताल जिला स्याल कोट में हुआ था। पिता बुलाकी राय एमताबाद , जिला , गुजराँ वाला के निवासी थे। आप पुंछ-जिला सियालकोट में अध्यापक थे। नाना देवीदयाल अत्यधिक साधन सम्पन्न तथा धार्मिक विचारधारा के प्रभावशाली व्यक्ति थे।
गुलजारी लाल नन्दा का जीवन परिचय |
शिक्षा-दीक्षा
नन्दा जी की प्रारम्भिक शिक्षा उनके नाना के घर में हुई। छह वर्ष की अवस्था में आपका दाखिला घड़ताल के एक स्कूल में कराया गया । परन्तु पढ़ाई में आपका मन न लगा। कुछ समय पश्चात नन्दा जी के मामा दीवान ज्ञान चन्द इन्हें अपने साथ पुंछ ले गए। वहाँ पुंछ के विद्यालय से आठवीं उत्तीर्ण करने के पश्चात नौंवी की पढ़ाई के लिए आप अपने छोटे मामा दीवान मुल्कराज पुरी के साथ सियालकोट चले गए। वहाँ गण्डासिंह भोले राम हिन्दू हाई स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ से आपने हाई स्कूल की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आपने लाहौर के फर्ग्युसन कालेज से इण्टर तथा 1918 में बी0 ए0 की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। फिर आगरा कॉलेज से एम0 ए0 करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।
नन्दा जी अपने छात्र जीवन से ही जनसेवा के कार्य में रूचि लेने लगे थे। आपने कॉलेज में 'हॉस्टल एवं कालेज समाचार' पत्रिका निकाली। पुंछ में आपने ‘हक' नामक एक संस्था स्थापित की थी। बी० ए० करने के बाद आप महात्मा हंसराज के 'गढ़वाल अकाल सेवा दल' में शामिल होकर सेवा कार्य हेतु कुछ दिनों गढ़वाल भी रहे थे। इसी बीच आपका विवाह पंजाब के सिविल सर्जन डा0 केवल कृष्ण मेहता की पुत्री लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हुआ।
एम0 ए0 करने के पश्चात आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शोध के लिए अनुमति मांगी । आपके शोध का विषय था "श्रमिकों की आवास समस्या" अतः श्रमिकों की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए आप श्रमिक नगरी ‘कानपुर' चले गए। यहाँ आपकी भेंट 'प्रताप' पत्र के ओजस्वी सम्पादक गणेश शंकर 'विद्यार्थी' से हुई। विद्यार्थी जी ने आपको अहमदाबाद जाकर अनुसुइया जी से मिलने का सुझाव दिया। नन्दा जी अनुसुइया जी से मिलने अहमदाबाद चले गए। अहमदाबाद में आपकी भेंट गांधी जी से हुई। गांधी जी से आप अत्यधिक प्रभावित हुए। यहीं से आपका सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ होता है । अब नन्दा जी ने अपना शोध कार्य बन्द कर दिया।
सार्वजनिक जीवन
जब नन्दा जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति छोड़ी तो गाँधी जी ने नन्दा जी को सुझाव दिया आप पंजाब जाकर सेवा कार्य करें। इससे पूर्व नन्दा जी ने बम्बई के मजदूरों के लिए अनेक जनहितकारी कार्य किए थे। इससे प्रभावित होकर कुछ मजदूर संगठनों ने गाँधी जी को सुझाव दिया कि नन्दा जी को मुम्बई में ही रहकर कार्य करने दिया जाए। तब नन्दा जी को मुम्बई में ही उनकी योग्यता के अनुरूप राष्ट्रीय महाविद्यालय में अर्थशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया।
अन्य कार्य करते हुए नन्दा जी ने गांधी जी के आदेश पर अहमदाबाद के मजदूरों को संगठित किया। 1920 में नन्दा जी ने गाँधी जी के साबरमती आश्रम की तर्ज पर अहमदाबाद में 'साधक आश्रम' की स्थापना की। 1922 में आपको मजूर महाजन का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया गया। बस, इसी 'मजूर महाजन' से नन्दा जी का
राजनीतिक जीवन शुरू हुआ।
राजनीतिक जीवन
नन्दा जी को सर्वप्रथम 1926 में अहमदाबाद नगर पालिका का निर्विरोध सदस्य चुना गया। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण नन्दा जी को 1931-32 में जेल यात्रा भी करनी पड़ी। 1935 में आप बम्बई विधानसभा के सदस्य चुने गए। इस अवसर पर आप बम्बई के मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव भी रहे। नन्दा जी 1935 से लेकर 1939 तक बम्बई विधान सभा के सदस्य रहे। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको दो वर्ष के कारावास की सजा हुई थी। 1946 में बम्बई विधानसभा का पुनर्गठन किया गया। तब
आप पुनः बम्बई विधान सभा के सदस्य चुने गए । इस बार 1947 में आपके बम्बई राज्य का श्रम एवं आवास मंत्री बनाया गया।
1950 में जब नेहरू जी ने पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण के लिए एक समिति बनाई तो नन्दा जी को इस उपसमिति का उपाध्यक्ष बनाया गया। इसके एक वर्ष पश्चात ही प्रधानमंत्री नेहरू ने नन्दा जी को 1951 में केन्द्र में योजना मंत्री तथा सिंचाई एवं बिजली विभाग का मंत्री बनाया। दूसरे आम चुनाव के बाद आप केन्द्रीय मंत्रिमडल में 'श्रम मंत्री' बने। 1963 में नेहरू जी ने आपको भारत का 'गृह मंत्री' नियुक्त किया। गृह मंत्री के पद पर रहते हुए नन्दा जी को भारत वर्ष का दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रथम बार 27 मई 1964 को नेहरू जी के निधन पर आपको कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। इसी तरह 1966 में शास्त्री जी के निधन के अवसर पर आपको दूसरी बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। देश के प्रधानमंत्री के उच्चतम पद पर रहने के बावजूद आप में कभी पद लिप्स नहीं आई। आपने दोनों बार अपने योग्यतम साथियों को प्रधानमंत्री पद पर पदारूढ़ होने के लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी। 7 नवम्बर 1966 को आपने गृह मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया परन्तु इन्दिरा जी ने एक बार फिर नन्दा जी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। इन्दिरा जी ने नन्दा जी को रेल मंत्री बनाया।
अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए नन्दा जी ने जन सेवा के अति महत्वपूर्ण कार्य किए। आपने श्रमिकों के आवास की समस्या को दूर करने का भरसक प्रयास किया। आम जनता में देश भक्ति की भावना जाग्रत करने के लिए आपने 1952 में 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की। देश के नेताओं एवं अधिकारियों में व्याप्त भृष्टाचार को दूर करने
के लिए नन्दा जी ने 'सदाचार समितियाँ' गठित की। इतना ही नहीं 1956 में आपने 'भारत साधु समाज' का गठन किया। प्रशासन में सुधार लाने के लिए आपने 'प्रशासन सुधार आयोग' का गठन किया।
1970 में नन्दा जी ने राजनीति से सन्यास ले लिया। राजनीति से सन्यास लेकर आप अपनी पुत्री डा0 पुष्पा बेन के पास जाकर रहने लगे थे। परन्तु यहाँ रहकर भी आप आम जनता की सेवा में रत रहे । सत्ता से हटने के बाद आपने 'मानव धर्म मिशन' 'भारतीय संस्कृति रक्षा संस्थान' 'पीपुल्स फोरम आफ इण्डिया' नेशनल फोरम फार पीस 'सीक्यूरिटी एण्ड जस्टिस' जैसी अनेक संस्थाएं गठित कर जन सेवा की।
नन्दा जी दो बार हरियाणा के कैथल और कुरुक्षेत्र से सांसद रहे थे। सांसद के रूप में आपने कुरुक्षेत्र के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण कार्य किए। कुरुक्षेत्र को एक पुण्यक्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए आपने 'कुरुक्षेत्र विकास योजना' प्रारम्भ की। इस योजना के अंतर्गत कुरुक्षेत्र के तीन सरोवरों का पुनरुद्धार किया गया। ऐसा कहा जाता है कि इन सरोवरों के पास स्थित बरगद के पेड़ के नीचे खड़े होकर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
पुरस्कार एवं उपाधियाँ
नन्दा जी को देश एवं जनसेवा के लिए अनेकों पुरस्कार एवं उपाधियां प्रदान की गयी। विश्व धर्म सेवा संघ ने नन्दा जी को 'राजर्षि' की उपाधि से विभूषित किया। 1986 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने आपको आचार्य तुलसी महोत्सव उदयपुर सम्मेलन में 'अणुव्रत पुरस्कार' प्रदान किया। इसमें नन्दा जी को एक लाख रुपये की नकद राशि प्रदान की गयी। 24 जुलाई 1997 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने गुलजारी लाल नन्दा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया।
सादा एवं प्रेरक जीवन
नन्दा जी का जीवन हमेशा सादगी पूर्ण रहा। खादी का सादा कुर्ता-पजामा एवं गाँधी टोपी यही आपकी ड्रेस रही। लम्बा सा पतला चेहरा, उस पर बिखरी हुई छोटी-छोटी सफेद मूंछे और पतली सी देहयष्टि, यही नन्दा जी की पहचान थी। ईमानदार इतने कि गृह मंत्री के पद पर रहने के बावजूद नन्दा जी अपने लिए कहीं घर नहीं बना सके। गृह मंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद आप दिल्ली की डिफेन्स कालोनी में किराए पर रह रहे थे । इस समय प्रधानमंत्री इन्दिरा जी ने आपको सरकारी बंगला आवंटित करने की पेशकश की परन्तु आपने उसे सादर ठुकरा दिया और गरमियों में बिना पंखे और बिना खाट के रहना पसंद किया नन्दा जी ने।
निधन
भारतीय राजनीति के राजा जनक, सादगी, त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति, ईमानदारी की मिसाल, गुलजारी लाल नन्दा ने 15 जनवरी 1998 को सायं चार बजे अपनी इहलीला संवरण की। देश उनकी सेवाओं के लिए सदैव ग्रहणी रहेगा।
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