गोपीनाथ बोर्दोलोई का जीवन परिचय
भारत के महान सपूत, आधुनिक असम के निर्माता, प्रख्यात शिक्षा शास्त्री, लोकप्रिय नेता गोपीनाथ बोर्दोलोई का जन्म 1890 ई. में असम के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था । अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न इस व्यक्ति ने अपनी योग्यता, समझ, सूझ-बूझ, ईमानदारी और कठिन परिश्रम में असम के मुख्यमंत्री-पद को दो-दो बार सुशोभित किया।
गोपीनाथ बोर्दोलोई का जीवन परिचय |
शिक्षा-दीक्षा
गोपीनाथ की प्रारम्भिक शिक्षा उनके अपने गाँव में ही सम्पन्न हुई । तत्पश्चात् गुवाहाटी के काटन कालेज से 1907 में मैट्रिक की परीक्षा तथा 1909 में इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपकी उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से हुई । गोपीनाथ ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1912 में बी. ए. तथा 1914 में एम. ए. की परीक्षाए उत्तीर्ण की । एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आपने एल एल. बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एल एल. बी. करने के बाद गोपीनाथ गुवाहाटी लौट आए । गुवाहाटी लौटने पर आपने कुछ समय के लिए सोनाराम हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर कार्य किया ।
सार्वजनिक जीवन
गोपीनाथ ने 1917 से वकालत का पेशा अपना लिया था । परन्तु वे अधिक समय तक अपने को उस समय बह रही देश भक्ति की अजस्र धारा से दूर नहीं रख सके। उन दिनों महात्मा गाँधी का अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था। अनेकों लोग अपनी नौकरियाँ छोड़कर आन्दोलन में कूद रहे थे। बोर्दोलोई भी अपने को इस लहर से दूर न रख सके । आपने अपनी वकालत छोड़ दी तथा स्वन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूदते ही आपने सबसे पहले असम का व्यापक दौरा किया तथा जन-जन तक गाँधी जी का संदेश प्रसारित किया। उन्होंने लोगों को बताया कि वे विदेशी माल का बहिष्कार करें, खादी धारण करें तथा चरखा कातें, अंग्रेजों के साथ असहयोग करें। इस जनसंदेश में गोपीनाथ के साथ कई अन्य नेता भी थे जिनमें प्रमुख थे नवीनचन्द्र बोर्दोलोई, चन्द्रनाथ शर्मा, तरूणराम फूकन तथा कुलाध पर चालिहा
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गोपीनाथ के इस जन आन्दोलन से अंग्रेज सरकार सकते में आ गयी। परिणाम यह हुआ कि गोपीनाथ तथा उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें जेल में डाल दिया गया तथा एक वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया।
आपका सार्वजनिक जीवन मुख्यत: 1926 से प्रारम्भ होता है जब आपने कांग्रेस के 41वें अधिवेशन में भाग लिया। धीरे-धीरे आपकी लोक प्रियता बढ़ती गयी। 1932 में आपको गुवाहाटी नगरपालिका का अध्यक्ष चुना गया । उस समय असम एक अत्यन्त पिछड़ा प्रदेश था। असम में न अपना उच्च न्यायालय था और न ही कोई विश्वविद्यालय। गोपीनाथ के प्रयासों से ये दोनों ही संस्थान असम में स्थापित किए गए। 1939 में जब विधान सभाओं के चुनाव कराए गए तब असम विधान सभा में कांग्रेस सरकार को बहुमत मिला तथा गोपीनाथ बोर्दोलोई को असम का मुख्यमंत्री बनाया गया।
ब्रिटिश सरकार ने असम को देश से अलग-थलग करने की एक योजना बनाई थी। उस समय कांग्रेस देश की आजादी के लिए संघर्षरत थी। कांग्रेस से जुड़े गोपीनाथ बोर्दोलोई ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिसने अंग्रेज सरकार की इस कुल्सित नीति को समझा तथा इसके खिलाफ अपना स्वर मुर्खारत किया।
इसके अलावा असम का चाय उत्पादन में भारत में अपना विशेष स्थान है। उस समय चाय बागान के मालिक अंग्रेज हुआ करते थे। वे चाय बागान में काम करने वाले भारतीय मजदूरों का शोषण करते थे। इसके अतिरिक्त गोरे लोग भारतीय चाय बागानों से होने वाली आय अपने देश ले जाया करते थे। असम में गोपीनाथ बोर्दोलोई ने मजदूरों की
इस दयनीय स्थिति को समझा। उन्होंने चाय मजदूरों को अंग्रेजों के शोषण से मुक्त करने की आवाज उठाई। उन्होंने मजदूरों की स्थिति में सुधार करने के लिए संघर्ष किया। उनके प्रयत्नों से चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के उपरान्त पूरे भारत की विधान सभाओं के लिए चुनाव काराए गए। सारे भारत की विधान सभाओं में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ। असम में भी गोपीनाथ बोदोलोई के मुख्यमंत्रित्व में कांग्रेस की सरकार बनी । 1947 में देश अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ।
अंग्रेज सरकार की यह नीति थी कि भारत के विभिन्न भागों को अलग-अलग कर अनेक भारत बना दिए जाए। इस योजना को अंग्रेजों ने ग्रुपिंग सिस्टम नाम दिया था। वे असम को विभाजित कर पूर्वी पाकिस्तान में मिला देना चाहते थे। गोपीनाथ ने अंग्रेजों की इस कूटनीति को भली-भाँति समझ लिया था। आपने अंग्रेजों की इस 'ग्रुपिंग सिस्टम' का जबरदस्त विरोध किया।
उन्हीं दिनों 6 और 7 जुलाई को मुम्बई में कांग्रेस का अधिवेशन सम्पन्न हुआ । कांग्रेस ने अंग्रेजों की इस 'ग्रुपिंग सिस्टम' योजना पर विचार किया । दुख की बात यह है कि कांग्रेस के नेता अंग्रेजों की इस चाल को समझ नहीं पाये । उन्होंने अंग्रेजों की इस नीति का समर्थन किया । परन्तु गोपीनाथ गोर्दोलोई ने अंग्रेजों की विवघटनकारी इस नीति
का विरोध किया । उनका कहना था कि असम के सम्बंध में जो भी निर्णय लिया जाएगा या असम का जो भी संविधान बनाया जाएगा उसका पूरा अधिकार असम की विधानसभा और जनता को होगा।
गोपीनाथ बोर्दोलोई की इस दूरदर्शिता के कारण ही असम पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनने से बच सका । देश के प्रति सच्ची निष्ठा, लगन और दूरदर्शिता के कारण गोपीनाथ ने अखिल भारतीय स्तर के नेताओं में इतना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया कि कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं ने उनकी बात मानी तथा समवेत स्वरों में अंग्रेजों की 'पिंग सिस्टम' का विरोध मुखर किया ।
उस समय अगर अंग्रेजों की यह चाल सफल हो गयी होती तो अखण्ड भारत का गाँधी का सपना अधूरा ही रह गया होता। गोपीनाथ बोर्दोलोई की दूर-दर्शिता ने देश के टुकड़े-टुकड़े होने से बचा लिया। गोपीनाथ के इस कार्य से आपका सम्मान अत्यधिक बढ़ गया । लोग उन्हें प्रेम और श्रद्धा से 'शेर-ए-असम' कहकर पुकारते थे।
निधन
देश के इस महान नेता का 1950 में निधन हो गया।
भारत रत्न
देश की उन्नति, अखण्डता और समृद्धि के लिए गोपीनाथ बोर्दोलोई के कार्यों से अभिभूत होकर भारत सरकार ने उनके निधन के लगभग 48 वर्ष बाद 1999 में मरणोपरान्त उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित करने का निश्चय किया। वे वास्तव में भारत रत्न थे।
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