राजस्थान की कहावतें | Proverbs of Rajasthan in Hindi
नमस्कार दोस्तों, Gyani Guru ब्लॉग में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में राजस्थान की कहावतें से संबंधित सामान्य ज्ञान (Rajasthani Proverbs in Hindi) दिया गया है। इस आर्टिकल में राजस्थानी कहावतों से संबंधित जानकारी का समावेश है जो अक्सर परीक्षा में पूछे जाते है। यह लेख राजस्थान पुलिस, पटवारी, राजस्थान प्रशासनिक सेवा, बिजली विभाग इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अगर आपको कोई राजस्थानी कहावत याद है तो नीचे कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।
राजस्थान की कहावतें | Proverbs of Rajasthan in Hindi |
राजस्थानी लोक कहावतों के विशाल भंडार से कुछ निम्न इस प्रकार है-
➤ घर तो नागर बेल पड़ी, पाड़ोसण को खोसै फूस।
(अपने पास सब कुछ होते हुए भी दूसरे की तुच्छ वस्तुओं को भी हड़पता है।)
➤ के बेरो ऊँट के करोट बैठे?
(भविष्य की असंदिग्धता पर क्या पता ऊँट किस करवट बैठे?)
➤ डर तो घणे खाये को है।
(डर तो अधिक खाने में है।)
➤ चतर नै चोगणी, मूरख नै सौ गणी।
(लक्ष्मी दूसरे के पास चतुर मनुष्यों को चौगुनी दिखलाई पड़ती है और मुर्ख को सौ गुनी)
➤ झूठ की डागला तांई जोर।
(झूठ की दौड़ छत तक होती है, झूठ अधिक नहीं चल सकता।)
➤ भांखड़ी के कांटा को आगड़े तांई जोर।
भांखड़ी (एक छोटा गोक्षुरक पौधा) का काँटा उद्गम स्थान तक ही शरीर के अंदर चुभ सकता है अर्थात् वह बहुत छोटा है। यानि, परिमित साधन वाला मनुष्य किसी का बड़ा अहित नहीं कर सकता)
➤ पान पडतो यूं कहै, सुन तरुवर बनराय।
इबका बिछड्या कद मिला, दूर पड़ांगा जाय।।
(गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो।)
➤ धरम को धरम, करम को करम।
(जब स्वार्थ-परमार्थ दोनों सिद्ध हों)
➤ दूसरां को माल तूंतड़ां की धड़ में जाय।
(दूसरों का धन लापरवाही से व्यय किया जाता है।)
➤ मीडंका नै तिरणु कुण सिखावै?
(मेढक को तैरना कौन सिखलाता है अर्थात् कोई नहीं। यह उसका सहज गुण है।)
➤ बड़े-बड़े गाँव जाऊँ, बड़ा बड़ा लाडू खाऊँ।
(मनुष्य को अपने परिश्रम का ही फल मिलता है, फिर भी वह अपनी आकांक्षाओं की तृप्ति के लिए हवाई किले बाँधता रहता है।)
➤ बाड़ के सहारै दूब बीघै।
(कमजोर मनुष्य भी आश्रय पाकर बढ़ता है।)
➤ जावो कलकत्तै सूं आगै, करम छांवळ सागै।
(कहीं चले जाओ, भाग्य साथ जाता है।)
➤ तंगी में कुण संगी।
(जब पैसा पास में नहीं रहता तो कोई साथ नहीं देता)
कम खावणो, र गम खावणो फायदो ही करे।
भाई भूरा, लेखा पूरा।
आँख फडकै बांई, के वीर मिले के सांई।
खेती करैन बिणजी जाय।
विद्या के बल बैठयो खाय।।
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➤ अकल सरीरां ऊपजै दिवी न आवै सीख।
अण माँग्या मोती मिले, माँगी मिलै न भीख।।
ग्रामीण जन सामान्य के लिए कहावतें वेद व शास्त्रों के अनुरूप कार्य करती हैं। अपनी बात या विचार तथा सोच या मत के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए वे प्रायः कहावतों को प्रयोग करते हैं और अपने प्रति आस्था या विश्वास उत्पन्न करने में सफल होते हैं। राजस्थान में गाँवों में यह कहावतें इतने अधिक विषयों और संदर्भो से संबंधित होती हैं कि अगर इनका अध्ययन किया जाए तो इनसे राजस्थान की सभ्यता एवं संस्कृति को भली-भाँति समझा जा सकता है।
अतः संस्कृति के भग्नावशेष इन लोकोक्तियों में छिपे पड़े हैं। भारतीय संस्कृति की अखंडता का स्वरूप राजस्थानी कहावतों से स्पष्ट रूप से झलकता है। राजस्थान में प्रचलित कुछ प्रमुख कहावतों का विवरण इस प्रकार है-
➤ आजकल बिना ऊँट उमाणा फिरे
(मूर्ख बुद्धि का अभाव होने के कारण साधनों का प्रयोग नहीं कर पाते)।
➤ अनहोणी होणी नहीं, होणी होय सो होय।
(जो होना है, वह होकर रहेगा)
➤ अभागियो टावर त्युंहार नै रूसै।
(मनभागी सुअवसर से लाभ नहीं उठा पाता है।)
➤ अम्मर को तारो हाथ सै कोनी टूटे।
(आकाश का तारा हाथ से नहीं टूटता)
➤ अरडावतां ऊँट सदै।
(किसी की दान पुकार पर भी ध्यान न देना)
➤ असो भगवान्यू भोलो कोनी जको भूखो भैंसा में जाय।
(भगवानिया ऐसा मूर्ख नहीं है जो भूख ही भैंस चराने जाए।)
➤ आँख मीच्यां अंधेरो होय।
(आँख मूंदने पर अंधेरा हो जाता है अर्थात् दुनिया के दुःखों की ओर से तटस्थ हो जाना।)
➤ अत्रे-अत्रे वाहाण, नदी नाला गरजते।
(सब कामों में ब्राह्मण आगे रहता है किंतु कहीं नदी नाला आया तो वह पीछे ही रहता है अर्थात् ब्राह्मण खतरे से दूर रहता है।)
➤ अणदोखीनै दोख, बीनै गति मोख।
(जो निरपराध पर दोष लगावे, उसे गति या मोक्ष कुछ न मिले।)
➤ आप मां बिना सुरग
(अपने हाथ से काम करने पर ही पूरा पड़ता है।)
➤ आम खणा क पेड़ गिणना?
(मनुष्य को अपने काम से मतलब रखना चाहिए।)
➤ आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटू, तू मर्ने चाट।
(दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम निरर्थक होता है।)
➤ आँख कान मोती करम, ढोल बोल अर नार।
ओता फूटा ना भला, ढाल तोप तलवार।।
(उपर्युक्त सारी चीजों का न फूटना ही अच्छा है।)
➤ आज मरयो, दिन दूसरो।
(जो गया सो गया)
आज हमां अर काल थमां।
(आज जो हम पर बीत रही है, वह कल तुम पर भी बीत सकती है।)
➤ आँख्याँ देखी परसराम, कदे न झूठी होय।
(प्रत्यक्ष देखी हुई बात कभी झूठी नहीं होती।)
➤ आँ तिलां में तेल कोनी।
(इन तिलों में तेल नहीं अर्थात् यहाँ कोई सार नहीं।)
➤ आँधा में काणो राव।
(अंधों में काना राजा)
➤ आपकी छोड़ पराई तक्कै, आवै ओसर के थक्कै।
(जो अपनी छोड़ पराई की ओर दृष्टि रखता है, उसे समय का आघात सहना पड़ता है।)
➤ आप गुरुजी कातरा मारे, चेलां नै परमोद सिखावै।
(स्वयं गुरुजी तो कातरे मारते हैं और शिष्यों को उपदेश देते हैं।)
➤ आगो थारो, पीछो म्हारो।
(आपके आगे हमारी पीठ, चाहे जो कीजिए।)
➤ आ छाय तो ढोलया जोगी ही थी।
(निरुपयोगी वस्तु के नाश पर खेद न होना)
➤ आदै थाणी न्याय होय।
(बेईमानी का फल मिल ही जाता है।)
➤ आप कमाड़ा कामड़ा, दई न दीजै दोस।
(अपने किए हुए कर्मों के लिए दैव को दोषी नहीं ठहराना चाहिए)
➤ आडा आया, मा का जाया।
(सहोदर भाई ही संकट के समय सहायक होते हैं।)
➤ आड़ू चाल्या हाट, न ताखड़ी न बाट।
(मूर्ख का काम अव्यवस्थित होता है।)
➤ आँख गई संसार गयो, कान गयो हँकार गयो
(जिस प्रकार आँखों की दृष्टि के साथ संसार अदृश्य हो जाता है उसी प्रकार बहरा होने के साथ अहंकार समाप्त हो जाता है।)
➤ इसे परथावां का इसा ही गीत।
(ऐसे विवाहों के ऐसे गीत होते हैं।)
➤ ई की मा तो ई नै ही जायो।
(इसकी माता ने तो इसे ही पैदा किया है अर्थात् यह अद्वितीय है।)
➤ इव ताणी तो बेटी बाप कै ही है।
(अभी कुछ नहीं बिगड़ा है।)
➤ उल्टो पाणी चीलां चडै।
(जहाँ अनहोनी होती है, वहाँ इस उक्ति का प्रयोग किया जाता है।)
➤ उठे का मुरदां उठे बळेगा, अठे का अठे।
(एक स्थान की वस्तु किसी अन्य स्थान पर काम नहीं दे सकती।)
➤ उत्तर पातर, मैं मियां तू चाकर।
(उऋण होने में जो आत्म-संतोष है, उसके संबंध में गर्वोक्ति है।)
➤ ऊँखली में सिर दे जिको धमकां सैं के डरै।
(जिसको कठिन-से-कठिन काम करना है, विघ्नों से उसे डरने की आवश्यकता नहीं।)
➤ एक घर तो डाकण ही टाळै है।
(बुरे से बुरे व्यक्ति को भी कहीं न कहीं लिहाज रखना पड़ता है।)
➤ एक हाथ में घोड़ो, एक हाथ में गधो है।
(भलाई-बुराई दोनों मनुष्य के साथ हैं।)
➤ ऐं बाई नै घर घणा।
(योग्य पुरुष का सर्वत्र की आदर होता है।)
➤ ओछा की प्रीत कटारी को मरवो।
(ओछा मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान हैं।)
➤ ओसर चूक्या नै मोसर नहीं मिलै।
(गया हुआ अवसर दुबारा हाथ नहीं आता।)
➤ ओ ही काल को पड़यो, ओ ही बाप को मरबो।
(विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।)
➤ और सब सांग आ ज्यायं, बोरै वाळो सांग कोन्या आते।
(निर्धन बोहरे का स्वांग नहीं भर सकता।)
➤ कंगाल छैल गाँव नै भारी।
(गरीब शौकीन गाँव के लिए भार स्वरूप होता है।)
➤ कनफड़ा दोन्यू दीन बिगड्यां
(निकृष्ट साधु दोनों दीन से गये।)
➤ कबूतर ने कुवों ही दिखै।
(गरीब अपनी रक्षार्थ शरणदाता के पास जाता है।)
➤ कमाऊ आवै डरतो, निखट्टू आवै लड़तो।
(कमाऊ डरता हुआ आता है और निकम्मा लड़ता हुआ।)
➤ कमेडी बाज ने कोनी जीतै।
(निर्बल सबल को नहीं जीत सकता।)
➤ कलह कलासै पैडे को पाणी नासै।
(गृह-कलह के कारण परीडे का पानी भी नष्ट हो जाता है क्योंकि घर में फूट पड़ने के कारण कुएं से पानी लावे कौन?)
➤ काटर कै हेज घणों।
(दूध न देने वाली गाय अपने बछड़े से अधिक प्रेम दिखलाती है।)
➤ काणत्ती भेड़ को रायड़ो ही न्यारो।
(विशिष्ट पुरुषों में स्थान न मिलने के कारण निकृष्ट व्यक्ति अपना संगठन अलग कर लेते हैं।)
➤ कांदे वाला छीलका है, उचींदै जितणी ई बास आवै।
(बुराई की जितनी तह में जाएँगे, उतनी ही अधिक बुराई नजर आएगी।)
➤ कागलां के काछड़ा होना तो उड़ता के ना दीखता।
(गुण यदि मनुष्य में हो तो साफ दिखाई देते हैं।)
➤ काळा कने बैठया काट लागै।
(दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है।)
➤ काम की मा उरैसी, पूत की मा परैसी।
(काम करने वाला अच्छा लगता है, नहीं काम करने वाला सुंदर और प्रिय भी अच्छा नहीं लगता।)
➤ कदे न घोड़ा हींसिया, कदे न खीच्या तंग।
कदे न रांड्या रण चढ्या, कदे न बाजी बंब।।
(कायर पुरुष कभी भी दुस्साहसपूर्ण कार्य को अंजाम नहीं दे सकता।)
➤ कूवै में पड़कर सूको कोई भी नीकळे ना।
(कार्य के अनुरूप फल मिलता है।)
➤ खर घूघू मूरख नरा सदा सुखी प्रिथिराज।
(गधा, उल्लू और मूर्ख मनुष्य सदा सुखी रहते हैं, क्योंकि उनको किसी प्रकार भी चिंता नहीं सताती।)
➤ खैरात बटै जठे मंगता आपै ही पूंच ज्यावै।
(जहाँ खैरात बंटती है, वहाँ भिक्षुक अपने आप ही पहुंच जाते हैं।)
➤ खोयो ऊँट घड़ा में ढूंते।
(यदि किसी मनुष्य की कोई चीज खो जाए, उसका नुकसान हो आए, अथवा यदि वह बुरी तरह ठगा जाए तो वह इतना विकल हो जाता है कि उसे संभव-असंभव का ज्ञान नहीं रहता।)
➤ खावै पूणु, जीणै दूणू
(जो पूरा पेट न भर कर चतुर्थांश खाली रखता है, उसकी आयु दुगनी हो जाती है।)
➤ खिजुर खाय सो झाड़ पर चडै।
(जिसे लाभ की आकांक्षा हो, वही खतरा मोल लेता है।)
➤ खेती धणियाँ सेती।
(खेती मालिक की निगरानी से ही फलदायिनी होती है।)
➤ खावै तो ई डाकण, न खावै तो ई डाकण
(बदनाम व्यक्ति यदि बुरा कार्य न भी करे तो भी उस पर लांछन लग जाता है।)
➤ गोद लडायो गीगलो, चढ्यो कचेड़याँ जाट।
पीर लड़ाई पदमणी, तीनू हिं बारा बाट।।
(अधिक लाड़ चाव में पला लड़का, कचहरियों में मुकदमेबाजी करते रहने वाला जाट, पीहर में लड़ाई कर गई स्त्री ये तीनों बर्बाद हो जाते हैं।)
➤ गाडा ने देख कर पाडा का पग सूजगा
(संकट को देखकर महिष के भी पैर सूज गये)
➤ गणगोयां नै ही घोड़ा न दौड़े तो कद दोडै?
(यदि मौके के दिन ही आनंद न मनाया जाए तो कब मनाया जाएगा।)
➤ गंगा तूतिये में कोनी नावहै।
(गंगा मिट्टी के छोटे-से बर्तन में नहीं समा सकती।)
➤ गई भू गयो काम, आई भू आयो काम।
(काम किसी के भरोसे नहीं रुकता)
➤ गेरदी लोई तो के करैगो कोई?
(जब मर्यादा छोड़ दी तो कोई क्या कर लेगा?)
➤ गैली रांड का गैला पूता।
(पगली औरत के पगले पुत्र होते हैं)
➤ गैली सारां पैली
(अयोग्य आदमी का हर काम टाँग अड़ाना।)
➤ गुड़ देतां मरै, बीनै झैर क्यूं देणूं?
(मीठे बोलने से काम चले, वहाँ कटु क्यों बोला जाए?)
➤ गुण गैल पूजा।
(गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है।)
➤ गोलो र मूंज पराये बल आंवसै।
(दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है, मूंज भी पानी का बल पाकर ऐंठ जाती है।)
➤ घर में कोन्या तेल न तांई, रांड मरै गुलगळ तांई
(घर में तेल तक नहीं है और रांड गुलगुलों के लिए लालायित हो रही है।)
➤ घण जायां घण ओळमा घण जायं घण हाण।
(अधिक बच्चों के होने से अधिक उपालम्भ मिलते हैं और गालियाँ सुननी पड़ती हैं।)
➤ घण जायां घण नास।
(संतान की अधिकता कुटुम्ब की एकता का नाश करती है।)
➤ घणी सूघी छिपकली चुग-चुग जिनावर खान।
(ऊपर से सीधा-सादा दिखलाई पड़ने वाला ही कभी-कभी बड़ा घातक सिद्ध होता है।)
➤ घणूं बळ भयां घूडो पड़ै।
(खींचातानी से वैमनस्य बढ़ जाता है।)
➤ घर-घर मांटी का चूला।
(घर-घर सभी की सामान्य आर्थिक स्थिति है।)
➤ घण मीठा में कीड़ा पड़े।
(अति प्रेम में अंत में कभी-कभी कटुता बढ़ती देखी गई है।)
➤ घूमटा सै सती नहीं, मुंहाया सै जती नहीं।
(कोई स्त्री घूंघट निकालने से ही सती नहीं हो जाती, और मूंड मुंडा लेने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता)
➤ घोड़ी तो ठाण बिके।
(गुणी की उपयुक्त जगह पर ही कीमत होती है।)
➤ चून को लोभी बातां सूं कद माने।
(आटे का लोभी बातों से कैसे मान सकता है।)
➤ चोखो करगो. नाम धरगो।
(जो अच्छा कर गया, उसका हमेशा के लिए नाम हो गया।)
➤ चालणी में दूद दुवै, करमा नै दोस देवै।
(स्वयं मूर्खता करता है और व्यर्थ में भाग्य पर दोषारोपण करता है।)
➤ चावळा को खाणो फलसै ताँई ताँई जाणे।
(जो चावल खाता है, उसमें बल नहीं होता, वह केवल द्वार तक जा सकता है।)
➤ चाए जिता पाळो, पाँख उगतां ही उड़ ज्यासी।
(पक्षी के बच्चों को चाहे जितना पालो, पंख उगते ही वे उड़ जाएंगे।)
➤ चाकरी सैं सूं आकरी।
(नौकरी सबसे कठिन है।)
➤ च्यार दिनारी चानणी, फेर अंधेरी रात।
(वैभव क्षणभंगुर है।)
➤ चाँदी देख्यां चेतना, मुख देख्यां व्योहार
(चाँदी को आँखों से देखने पर चेतना और किसी के आमने-सामने देखने पर ही उससे व्यवहार होता है।)
➤ चिड़ा-चिड़ी की कै लड़ाई, चाल चिड़ा मैं आई।
(चिड़िया और चिड़े की परस्पर कैसी लड़ाई है? हे चिड़े! चलो मैं आई यानि दम्पति की लड़ाई स्थायी नहीं होती।)
➤ चीकणी चोटी का सै लगावळ।
(धनवान से सभी लोग कुछ लेने की इच्छा करते हैं।)
➤ चीक धई पर बूंद न लागै, जै लागो तो चीठो।
(चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है।)
➤ छाज तो बोले सो बोले पण चालणी बी बोले के ठोतरसो बेज।
(निधि तो दूसरे को कुछ कह सकता है किंतु जो स्वयं दोषी हो, वह दूसरे को क्या कर सकता है।)
➤ छोटी मोटी कामणी सगळी विष की बेल
(छोटी या बड़ी, सभी कामिनियाँ जहर की बल । अथवा विषय वासना की ओर ले जाने वाली हैं।)
➤ जवान में ही रस अर जबान में ही बिस।
(बोली में ही रस है और बोली में ही विष रहता है।)
➤ जल को दूव्यो तिर कर निकले, तिरियो डूब्यो बह ज्याय।
(जल का डूबा हुआ बच कर निकल सकता है, लेकिन जो नारी में आसक्त है, वह अवश्य डूब जाता है।)
➤ जी की खाई बाजरी, ऊँकी भरी हाजरी।
(जिसका अन्न खाय, उसी की खुशामद की जाती है।)
➤ जेठा बेटा र जेठा बाजरा राम दे तो पावै।
(ज्येष्ठ लड़का और ज्येष्ठ मास में बढ़ा हुआ बाजरा भाग्य से ही मिलता है।)
➤ जीवइल्यां घर ऊजई. जीवड़याल्यां घर होय।
(कटु भाषा से घर उजड़ जाते हैं, मधुर भाषा से घर बस जाते हैं।)
➤ जेर सैंई सेर हुया करै है।
(छोटे बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, वे कालांतर में बलवान हो जाते हैं।)
➤ जीवती मांखी कोन्या गिटी जाय।
(जान-बूझकर कोई बुरा काम नहीं किया जा सकता)
➤ जुग देख जीणूं है।
(समयानुसार चलना चाहिए।)
➤ जुग फाट्यां स्यार मरै।
(संगठन टूटने से ही नाश होता है।)
➤ टुकड़ा दे दे बछड़ा पाल्या, सींग हुया जद मारण चाल्या।
(टुकड़ा दे-देकर बछड़ों का पालन-पोषण किया, जब वे बड़े हुए तो मारने आये। यह उक्ति कृतघ्न आश्रितों के लिए है।)
➤ टूटी की बूटी कोनी।
(जब आयु शेष नहीं रह जाती तो कोई दवा काम नहीं देती।)
➤ टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी।
(हमारी तो थोड़ी-सी हानि हुई, किंतु दुष्ट के स्वभाव का पता चल गया।)
➤ ठोकर खार हुंस्यार होय।
(मनुष्य ठोकर खाकर ही होशियार होता है।)
➤ ठाडै के धन को बोजो-बोजो रुखाळो है।
(शक्तिशाली के धन को कोई जोखिम नहीं)
➤ ठंहो लोह ताता नै काटे।
(शील सम्पन्न मनुष्य अपने शील से दूसरे की उग्रता को दूर कर देता है।)
➤ ठांगर के हेज घणू, नापेरी के तेज घणूं।
(दूध न देने वाली निकम्मी गाय बछड़े के प्रति अधिक स्नेह करती है और उसके पीहर न हो, या अधिक झल्लाती है।)
➤ डूंगरा ने छाया कोनी होया।
(महापुरुषों की मदद करना साधारण आदमियों का काम नहीं, वे अपनी मदद स्वयं ही करते हैं या ईश्वर उनकी मदद करता है।)
➤ ढांढा मारण, खेत सुकावण, तु क्यूं चाली आधै सावण?
(आधा सावन बीत जाने पर मनोरम हवा का चलना पशुओं और कृषि के लिए हानिप्रद होता है।)
➤ तवै की काची नै, सासरै की भाजी ने, कठेई ठोड कोनी।
(तवे पर जो रोटी कच्ची रह जाती है तथा जो स्त्री ससुराल से भाग जाती है, इन दोनों का कहीं ठौर-ठिकाना नहीं रहता।)
➤ ताता पाणी सै कसी बाड़ बलै?
(केवल क्रोध भरे वाक्यों से किसी का अनिष्ट नहीं हो सकता।)
➤ ताळी लाग्यां ताळो खुलै।
(युक्ति से ही काम होता है।)
➤ तेल तो तिल्यां सै ही निकलसी।
(तेल तो तिलों से ही निकलेगा।)
➤ थावर कीजे थरपना, बुध कीजे व्योहार
(स्थापना शनिवार को और व्यवहार बुधवार को शुरू करना चाहिए)
➤ थोथो चणो बाजै घणो।
(जिनमें गुण नहीं होते, वह ही बढ़-चढ़ कर बातें करते हैं।)
➤ थोथो संख पराई फूंक से बाजै।
(जिसमें स्वयं की बुद्धि नहीं होती, वह स्वतः कोई कार्य नहीं कर सकता)
➤ दलाल के दिवाळो नहीं, महजीत के ताळो नहीं।
(दलाल के दिवाला नहीं होता, मस्जिद के ताला नहीं होता क्योंकि मस्जिद में रखा ही क्या है जो ताला लगाना जाए?)
➤ देखते नैणां, चालते गोडां।
(आँखों में देखने की तथा पैरों में चलते रहने की शक्ति रहते ही मृत्यु हो जाए तो सुखद है।)
➤ दोनूं हाथ मिलायां ही धुपै।
(दोनों ओर से कुछ झुकने पर ही समझौता होता है।)
➤ दीवां बीती पंचमी सोम सुकार गुरु मूल।
डक कहै है भडुली, सातू निपजै तूल॥
➤ धायो मीर, भूखो फकीर, मयां पाछै पीर।
(मुसलमान के लिए कहा गया है कि वह तृप्त हो तो अमीर कहलाता है, भूखा हो तो फकीर कहलाता है, मरने के बाद पीर
कहलाता है।)
➤ धीणोड़ी के सागै हीणोड़ी मर ज्याय।
(दुधारी गाय के साथ बिना दूधवाली को कोई नहीं पूछता)
➤ धोबी की हांते गधोखाया
(नीच का धन नीच खाता है।)
➤ नंदी परलो-जद, कर होण विणास।
(नदी-तट पर स्थित वृक्ष चाहे जन नष्ट हो जाता है।)
➤ नकटा देव, सूरडा पुजारा।
(जैसे देव, वैसे ही पुजारी)
➤ न कोई की राह में, न कोई दुहाई में।
(वह अपने काम से काम रखता है।)
➤ नागारां में तूती की आवाज कुण सुणे?
(जहाँ बड़े आदमियों की चलती है, वहीं छोटी को कौन पूछता है?)
➤ नर मानेरै, घोड़ो दावे।
(आकृति-प्रकृति में पुरुष मातृकुल का अनुसरण करता है और घोड़ा पितृकुल का।)
➤ नरूका नै नरुका मारै, के मारे करतार।
(जबरदस्त को जबरदस्त ही मार सकता है या ईश्वर।)
➤ नांव राखै गीतड़ा के भींतड़ा।
(मनुष्य का यश चिरस्थायी रहता है या तो काव्य-निर्माण से या भवन-निर्माण से।)
➤ नाजुरतिये की लुगाई, जगत की भोजाई।
(सामर्थ्यहीन की लुगाई, जगत की भोजाई।)
➤ नानी कसम करै, दूयती नै डंड।
(नानी तो दूसरा पति करती है और दोहिती को दंड मिलता है।)
➤ नारनोल की आग पटीकड़ो दाजै।
(अपराध कोई करता है और फल किसी और को मिलता है।)
➤ निकळी होठां, चड़ी कोठां।
(बात मुंह से निकलते ही सब जगह फैल जाती है।)
➤ नीत गैल बरकत है।
(ईमानदारी से ही धन की वृद्धि होती है।)
➤ नेम निमाणा, धर्म ठिकाणा।
(नियम और धर्म नियमी और धर्मी के पास ही रहते हैं।)
➤ न्यारा घरां का न्यारा घारणा।
(अपने-अपने घर की अपनी-अपनी रीति होती है।)
➤ पड़-पड़ कै ई सवार होय है।
(गलती करते-करते ही मनुष्य होशियार हो जाता है।)
➤ पर नारी पैनी छुरी, तीन ओड सै खाय,
धन छीजै, जोबन हडै, पत पंचा में जाए।
(परनारी पैनी छरी के समान है। वह तीन ओर से खाती है-धन क्षीण होता है, यौवन का नाश करती है और लोकोपवाद होता है।)
➤ पाप को घड़ो भर कर फूटै।
(पाप अंत में प्रकट हो ही जाता है।)
➤ पीरकां की आस करै, जकी भाईड़ा नै रोवै।
(जहाँ से कुछ मिलने की आशा न हो, वहाँ से आशा रखना व्यर्थ है।)
➤ पीसो पास को, हथियार हाथ को।
(पास में रखा हुआ पैसा और हाथ का हथियार ही समय पर काम देते हैं।)
➤ पुल का बाया मोती निपजें।
(अवसर पर किया हुआ काम ही फलदायी होता है।)
➤ पाँच आंगळिया पूंच्यो भारी।
(एकता में बल है।)
➤ पांचू आंगकी एक सी कोनी होय।
(सब भाई समान नहीं होते।)
➤ पांव उमाणे जायसी, कोडीयज कंगाल।
(धनी-गरीब सभी भरने के समय नंगे पैर जाएंगे।)
➤ पूत का गल पालणे ही दीख्यावै।
(बाल्यावस्था में ही बालक के भविष्य की कल्पना कर ली जाती है।)
➤ फाडुणियै नै सीमणियूं कोनी नाव।
(जहाँ बेहद खर्च होता हो, वहाँ कमाने वाला कहाँ तक कमाये।)
➤ बड़े लोगों के कान होय हैं, आँख नहीं।
(बड़े लोग सुनी हुई बात पर विश्वास कर लेते हैं, क्योंकि वे स्वतः जाँच-पड़ताल नहीं कर पाते।)
➤ बालक देखै हीयो, बूडो देखै कीणे।
(बालक तो हृदय देखता है, प्रेम को पहचानता है, और अवस्था में बड़ा मनुष्य किए हुए काम को देखता है। उसे काम चाहिए, वह केवल भाव का भूखा नहीं। )
➤ बावै सो लूणे।
(जो जैसा बोता है, वैसा काटता है।)
➤ भाठे सैं भाठो भिड्यां बीजली चिमकै।
(दो दुर्जनों की लड़ाई में नाश ही होता है।)
➤ भाण राड लडूंगी, कुराड नहीं लडूंगी।
(हे बहिन! उचित झगड़ा करूँगी अनुचित नहीं)
➤ महंगो रोवै एक बार, साँगो रोवै बार-बार।
(जो महंगे दामों पर चीजें खरीदता है, वह एक बार कष्ट उठाता है और जो सस्ती चीजें खरीदता है उसे सदा हैरान होना
पड़ता है।)
➤ माया अंट की, विद्या कंठ की।
(अपने पास का ही पैसा काम आता है, विद्या भी जो कण्ठस्थ हो, वही मौके पर काम देती है।)
➤ मारणु ऊंदरो, खोदणूं डूंगर।
(जरा से काम के लिए बहुत बड़ा कष्ट उठाना बेकार है।)
➤ माल सै चाल आवै।
(धन से ही चाल आती है।)
➤ मतलब की मनुहार जगत जिमावै चूरमा।
(अपने स्वार्थ के लिए लोग दूसरों की खुशामद करते हैं।)
➤ मन कै पाज कोनी।
(मान के मर्यादा नहीं होती)
➤ मांटी की भींत डिगती बार कोनी लगावै।
(मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती।)
➤ मा मरी आधी रात, बाप मर्यो परभात।
(विपत्ति पर विपत्ति आती है।)
➤ यारी का घर दूर है।
(प्रेम निभाना बहुत मुश्किल है।)
➤ राख पत, रखाय पत।
(तुम दूसरों का आदर करोगे, तो वे तुम्हारी इज्जत करेंगे।)
➤ राड को घर हांसी, रोग को घर खांसी।
(हँसी-हँसी में लड़ाई-झगड़ा हो जाता है। खाँसी सब रोगों की जड़ है।)
➤ रात च्यानणी, बात आँख्यां देखी मानणी।
(रात तो चाँदनी रात ही है, आँखों देखी बात पर ही विश्वास करना चाहिए।)
➤ रूप की रोवै, करम की खाय।
(रूपवती स्त्री भी दुःखी रहती है किंतु कुरूप स्त्री भी यदि भाग्यशालिनी हो तो उसे भोजन की कमी नहीं रहती।)
➤ रोयां राबड़ी कुण पालै?
(केवल रोने से कुछ नहीं होता। परिश्रम करने से ही कुछ मिलता है।)
➤ लोहा लक्कड़ चामड़ा, पहळा किसा बखाण।
बहु बछेरा डीकरा, नीमटियाँ पखाण।।
(लोहा, लकड़ी, चमड़ा इनका पहले कुछ पता नहीं चलता। बहू, घोड़े का बच्चा और लड़का, इन सबका वयस्क होने पर ही पता चलता है।)
➤ संवारता बार लागै, बिगाड़ता कोनी लागै।
(किसी वस्तु को सुधारते देर लगती है, बिगाड़ते देर नहीं।)
➤ सागलै गुण की बूज है।
(सभी जगह गुणों का आदर होता है।)
➤ सदा न जुग जीवणा, सदा न काला केस।
(हमेशा संसार में जीना नहीं होता और यौवन भी सदा स्थिर नहीं रहता)
➤ साथ कई थी मावड़ी, झूठ कहै था लोग।
खारी लाग्यी मावड़ी, मीठा लाग्या लोग।
(माता का कहना सत्य निकला, अन्य लोग झूठ बोल रहे थे, किंतु उस समय लोगों के शब्द मधुर जान पड़े और माता के शब्द कटु प्रतीत हुए।)
➤ सांप कै मांवसियों की के साख?
(दुष्टकिसी का लिहाज नहीं करता।)
➤ सिर चदाई गावही गाँवई के लागी।
(दुर्जन को जब मुंह लगा लिया जाता है तो वह अनिष्ट करने लगता है।)
➤ सोनै के काट कोन्या लागै।
(सज्जन के कलंक नहीं लगता।)
➤ हर बहा क हिरणा बड़ा, सगुणा बड़ा क श्याम।
अरजन रथ नै हांक दे, भली करै भगवान।।
(हरिण का बायाँ आना अपशकुन समझा जाता है। हरिणों को बायीं ओर देखकर रथ हाँकने में अर्जुन को हिचकिचाहट होने लगी। इस पर किसी ने कहा, "जब भगवान अनुकूल हो तब शकुन का क्या देखना?")
➤ होत की भाण अणहोत को भाई।
(यदि किसी के पास धन होता है तब वह किसी को बहिन बनाता है, यदि स्त्री के पास कुछ नहीं होता तो वह दूसरे को अपना भाई बनाती है।)
➤ हांसी में खांसी हो ज्याय।
(हंसी-हंसी में लड़ाई हो जाया करती है।)
➤ सेल घमोड़ा जो सहै, सो जगीरी खाय।
(जो युद्ध में शस्त्रों की मार सहता है, वही जागीरी का उपभोग भी करता है।)
➤ हतकार की रोटी चौवटे ढकार।
(फोकट की रोटी खाये और बाजार के चौराहे पर डकार ले, थोथे अहंकार का प्रदर्शन)
➤ हाकिमी गरमाई की दुकानदारी नरमाई की।
(हाकिमगिरी कड़ाई से होती है और दुकानदारी नम्रता से)
राजस्थानी कहावतों में वर्षा
राजस्थान की कृषि तो मूलतया वर्षा पर ही निर्भर है, अतः कहावतों के रूप में वर्षा संबंधी कहावतें पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजस्थान के लोक जीवन में समाई हुई हैं-
मनुष्य, पशु-पक्षी एवं कीट पतंगों की क्रियाओं से वर्षा की संभावना का घनिष्ठ संबंध है। वायुमंडल आकाश, विद्युत इंद्रधनुष, आँधी आदि के आधार पर भी वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
मनुष्य शरीर की क्रियाएँ
➤ अत पितवालों आदमी, सोए निद्रा घो।
अण पढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर।।
(पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में भी घोर निद्रा निकाले तो समझो कि बहुत जोर से वर्षा होगी।)
➤ वात पित युत देह, ज्यांक, होय रहे घास-घूम।
अण भणियां आलम कथी, कहे मेहा अति घोर।।
(वात प्रकृति वाले व्यक्ति का गर्मी से सिर दर्द हो तो समझो जोर से वर्षा आएगी।)
विभिन्न उद्यमियों से अनुमान
➤ कुंदन जड़े न जड़ाव, अजे सलायत कीट,
को जड़ियां सूण जे लगत, उड़े मेह की रीठ
(नगीने जड़ते समय जो कुंदन न लगे और सलाइयों पर कीट जमने लगे तो समझिए कि वर्षा खूब होगी।)
➤ देख खुरड़ कहे ढेढ़ की, कंथा टूटे नेह,
लहेई चढ़ने चामड़े, मुकता बरसे मेह।।
(जूते बनाते समय यदि चमड़े पर लेई न चिपके तो समझो कि वर्षा आने वाली है।)
➤ धोब्या धोखे मिट गयो, मन में हुआ हुलास।
देख सूदणी बज बजी, मेह आवण री आस।।
(धोबी द्वारा कपड़े के खूम देने के माट में खंभीर उठे तथा माट में गर्मी अधिक हो तो वर्षा आने वाली है।)
➤ ढोल दमामा बुड़बड़ी,बैठे सावर बाज,
कहे डोम दिन तीन में इंद्र करे आवाज।।
(ढोल, नगाड़े और ताश आदि चमड़े से मढ़े हुए बाजे यदि ठीक से न बजें तो समझो तीन दिन में वर्षा आने वाली है।)
➤ बिगड़ी घिरत बिलोवणों, नारी होय उदास।
असवारी मेंह की रहे छास की छास।।
(दही बिलोने पर घी जल्दी एकत्रित न हो और छाछ में घुलमिल जाता हो तो समझो कि बहुत जोर से वर्षा होगी।)
पक्षियों की चेष्टाएँ
➤ चड़ी जो न्हावे धूल में, मेहा आवण हार।
जल में नहावे चिड़कली, मेह विदातिण बार।।
(जब चिड़िया धूल में नहाने लगे तब वर्षा की संभावना है, परंतु जब चिड़िया पानी में नहाने लगे तो वर्षा की विदाई समझो।)
➤ टोले मिल की कांवली, आय थला बैठंत।
दिन चौथे के पाँचवें, जल-थल एक करंत।।
(बहुत चीलें जब भूमि पर आकर बैठें तो चार-पाँच दिन में वर्षा अवश्य होगी।)
➤ पपैया पीऊ-पीऊ करै, मोरा घणी अजग्म।
छत्र करै, मोरया सिरे, नदिया बहे अथग्म।।
(पपीहा पीऊ पीऊ करने लगे, मोर बोलने लगे तथा सिर पर छत्र बनाकर नाचने लगे तो वर्षा होगी।)
कीट पतंगों की क्रियाएँ
➤ साँप, गोयरा, डेडरा, कीड़ी-मकोड़ी जाय।
दर छोड़े बाहर थमे, नहीं मेहण की हाण।।
(साँप, गोयरा, मेढक, चींटी, मकोड़ी अपने-अपने स्थान को
छोड़कर इधर-उधर फिरने लगें तो समझो वर्षा आने वाली है।)
➤ गिरगिट रंग बिरंग हो, मक्खी चटके देखें।
मकड़ियाँ चहचहा करें, जब अतजार मेह।।
(गिरगिट रंग बदले, मक्खी मनुष्य की देह पर चिपक जाए और मकड़ियाँ बार-बार शब्द करने लगे तो समझो वर्षा निकट है।)
हवा का प्रभाव
➤ वजनस पवन सुरिया बाजे।
घड़ी पलक मांहि मेहे गाजे।।
(यदि उत्तर-पश्चिमी हवा चले तो घड़ी दो घड़ी में वर्षा होगी।)
➤ पवन गिरि छूटे परवाई।
घर गिर छोबा, इंद्र धपाई।।
(यदि पूर्वी हवा चले तो भूमि और पर्वत को वर्षा तृप्त करेगी।)
बादल के लक्षण
➤ संवार रो गाजियो एलो नहीं जाए।
(प्रातःकाल बादल गर्जना अवश्य वर्षा लाता है।)
➤ बादल रहे रात को वासी।
तो जाणों चोकस मेह आसी।।
(पिछली रात के बादल सवेरे तक छाए रहे तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ शुक्रवार की बादली, रही शनिचर छाय।
डंक कहे है, भड़ली बरस्या बिना जाए।।
(शुक्रवार के बादल यदि शनिवार तक बने रहें तो वे बादल बरसे बिना नहीं रहेंगे।)
➤ तीतर पंखी बादली, विधवा काली रेख।
या बरसे वा धर करे, इण में मीन न मेख।।
(तीतर पंखों के समान छोटे-छोटे बादलों से आकाश यदि आच्छादित रहे तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ आकाश का स्वरूप
अम्बर राच्यों, मेह माच्यो।
(लाल आसमान वर्षा का सूचक है।)
➤ तारा तग-तग करे, अम्बर नीला हुन्त
पड़े पटल पाणी तणी, जद संजया फूलंत।।
(आसमान नीला हो, तारे बार-बार टिमटिमाते रहें और संध्या फूले तो समझो कि अवश्य वर्षा होगी।)
चंद्र व सूर्य के लक्षण
➤ सामा, सुकरां सुरगरां जो चंदो उंगत।
एक कहे है भड्डली, जल थल एक करंत।।
(यदि आषाढ़ में चंद्रमा सोमवार, गुरुवार व शुक्रवार को उदय हो तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ सावण सुतो भलो, उभो आषाढ़।
(श्रावण माह में द्वितीय का चंद्रमा सोया हुआ (टेढ़ा) और आषाढ़ में खड़ा दिखाई दे तो वर्षा के लिए शुभ)
➤ सूरज कुंड और चंद्र जलेरी।
टूटा टीबा भरगी डेरी।।
(यदि सूर्य के चारों ओर कुंड हो, वैसे ही चंद्रमा के चारों ओर चलेरी हो तो इतनी जोर से वर्षा होगी कि टीले टूट कर पानी के साथ बह जाएंगे और सरोवर जल से भर जाएँगे।)
महीनों का प्रभाव
➤ जेठ बदी दसमी, जे शनिवार होय।
पाणी होयन धरण में, बिरला जीवे कोय।।
(जेठ कृष्ण दशमी यदि शनिवार को हो तो वर्षा नहीं होगी।)
➤ पेली पड़वा गाजे, दिन बहत्तर बाजे।
(आषाढ़ की प्रतिपदा को यदि बादल गरजें तो बहत्तर दिन तक हवा चलती रहेगी और वर्षा नहीं होगी।)
➤ आषाढ़ की पुनम निरमल उगे चंद।
कोई सिंध कोई मालवे जायां कटसी फंद।।
(आषाढ़ की पूर्णिमा को चंद्रमा के साथ कोई बादल न हो तो अकाल पड़ेगा। मालवा व सिंध जाने पर ही अपने दिन
निकलेंगे।)
इस तरह से राजस्थानी कहावतों में वर्षा विज्ञान पर विशद् विवेचना की गई है। इनमें से कितने ही तथ्य परीक्षण में खरे उतरे हैं।
अंत में कह सकते हैं कि कहावत राजस्थानी लोक साहित्य की एक ऐसी विशिष्ट विधा है जिसमें लोक मानस की चमत्कारी प्रतिभा का रूपांकन मिलता है। राजस्थानी कहावतें अपनी मनोरंजकता के साथ ही साथ लोक जीवन के विविध रूपों व अनुभूतियों को प्रस्तुत करती हैं।
उम्मीद है यह 'राजस्थानी कहावतें' सामान्य ज्ञान लेख आपको पसंद आया होगा। इस आर्टिकल से आपको राजस्थान के प्रमुख कहावत, राजस्थान GK इन हिंदी, Rajasthan General Knowledge in Hindi, Rajasthan Samanya Gyan, Rajasthani Proverb Related GK, Rajasthani Proverb in hindi, राजस्थान सामान्य ज्ञान हिंदी इत्यादि की जानकारी मिलेगी।
An empty vessel sounds much ko rajasthani bhasa main kya kehte hain
ReplyDeleteघर खांट, देवता भला माने
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