ग्रीन सैंड मोल्डिंग शार्ट नोट्स | Green Sand Moulding Short Notes

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ग्रीन सैंड मोल्डिंग शार्ट नोट्स | Green Sand Moulding Short Notes

इस आर्टिकल में Green Sand Moulding के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गयी है। यह टॉपिक डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

ग्रीन सैंड मोल्डिंग ,  Green Sand Moulding
ग्रीन सैंड मोल्डिंग शार्ट नोट्स | Green Sand Moulding Short Notes


ग्रीन सैंड मोल्डिंग (Green Sand Moulding)
इस मोल्ड़िंग में आर्द्र रेत का साँचा प्राप्त होने पर साँचे को बिना सुखाए या पकाए या गीली अवस्था में ही उसमें पिघली धातु भारी जाती है। ढ़लाई में सर्वाधिक इसी प्रक्रम का प्रयोग होता है। इस हेतू प्रयुक्त आर्द्र रेत में सिलिका रेत के अतिरिक्त 10 से 15 प्रतिशत क्ले तथा 5 प्रतिशत तक नमी होती है।
ग्रीन सैंड मोल्ड़िंग की विधियां :- ग्रीन सैंड मोल्ड़िंग की तीन विधियां निम्न प्रकार है-

  खुली रेत विधि- इस विधि में ढ़लाई शाला के फर्श पर ही उसे समतल करके सकंचन रेत बेड के आकार में फैला दी जाती है। साँचा प्राप्त करने के लिए उस रेत में पैटर्न को दबाया जाता है। साँचे के एक तरफ़ धातु उड़ेलने के लिए गेट आदि का निर्माण किया जाता है तथा इसकी साइडों पर परिवाह चैनल बनायी जाती है।
इस विधि में कोई सकंचन बॉक्स प्रयुक्त नही होता और साँचे की ऊपरी ओर वायुमंडल में खुली रहती है। इस लिए ढ़लाई की ऊपरी सतह रूक्ष प्राप्त होती है।
इस प्रकार आर्द्र रेत सकंचन की सरलतम विधि है इस विधि का प्रयोग ग्रिल, गेट तथा रेलिंग सकंचन बॉक्स बाँट तथा फर्श प्लेट आदि सरल ढलाईयों हेततू किया जाता है।

2     संस्तरित विधि- इस विधि में आवश्यकता अनुसार एक या दोनों सकंचन बॉक्सों का प्रयोग किया जाता है। सर्वप्रथम ढलाई शाला फर्श पर या ड्रैग में सकंचन रेत अंशतः भरी जाती है। अब इसमें पैटर्न को दबा दिया जाता है। ड्रेग तथा कोप पृथककारी रेत छिड़की जाती है। कोप में स्प्रू तथा राइजर पिन रखे रहते हैं। पैटर्न निकालने के पश्चात रनर तथा गेट काटे जाते हैं और साँचे के सतहों कि परिष्कृत तथा मरम्मत करने के पश्चात कोप को फर्श पर या ड्रेग के साथ जोड़कर पूर्ण साँचा प्राप्त कर लिया जाता है।

3     उलटाव विधि:- इस विधि द्वारा ठोस या विभक्त दोनों ही प्रकार के पैटर्नों से सांचे प्राप्त किए जाते हैं। पैटर्न के आधे भाग को सकंचन बोर्ड पर उसकी चपटी सतह टिकाते हुए रखें। इसमें आवश्यकता अनुसार डबल पिनें भी ली जा सकती है। अब इसके ऊपर ड्रेग बॉक्स रखकर पृथककारी रेत और बाद में फलकन रेत डालिए। ड्रेग को उल्टीए और सकंचन बोर्ड हटा दीजिए।
अब पैटर्न के दूसरे आधे भाग को प्रथम आधे भाग पर डावल पिनों की सहायता से लगाइए और ड्रैग पर कोप बॉक्स रखकर पृथककारी तथा फलकन रेत का प्रयोग करते हुए सकंचन रेत भरीए और कुटीए। रेत कूटने के बाद आवश्यक स्थानों पर इस स्प्रू तथा राइजर को रखिए। कुटाई के पश्चात स्प्रू तथा राइजर पिनें निकालकर छिद्र तार की सहायता से विभिन्न छिद्र बनाए जाते हैं। जिनसे होकर गैसे बाहर निकलती हैं। अब पैटर्नों को निकालकर गेट तथा रनर काटकर साँचे की मरम्मत कीजिए।

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